नागरिकता संशोधन विधेयक को सॉर्ट में CAB भी कहते है. सरकार ने इस विधेयक में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है. मौजूदा क़ानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. लेकिन इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए ये समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.
सरकार की तरफ से पेश हुए विधेयक की अहम बात ग़ैर-मुसलमान प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देना और अवैध विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना है, जिनमें ज़्यादातर मुसलमान हैं. अमित शाह ने भी कहा है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.
कांग्रेस-एनसीपी समेत कई विपक्षी पार्टियां इस बिल का ज़ोरदार विरोध कर रही है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि धर्म के आधार पर देश को बांटने की कोशिश है. बतादें बिल का विरोध इसलिए भी है क्युकी नागरिकता संशोधन बिल के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी.
वहीं कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो एनडीए और यूपीए का हिस्सा नहीं हैं लेकिन उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में होने के संकेत दिए हैं. जिसमें तमिलनाडु एआईएडीएमके के 11, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल के 7, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के 2, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के 2 सांसद शामिल हैं.
अमित शाह ने सदन में साफ़ साफ़ कहा कि, 1947 में पाकिस्तान में 23% हिंदू थे लेकिन साल 2011 में ये आंकड़ा 3.4% ही रह गया. पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर भारत मूकदर्शक नहीं बन सकता. भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी है. भारत से हिन्दुओं की आबादी में कमी आई है जबकि मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी हुई है.
अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्यचारों पर भारत चुप नहीं बैठेगा. रोहिंग्या को भारत में कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा. रोहिंग्या बांग्लादेश के जरिए भारत आते हैं. ये बिल किसी धर्म के खिलाफ भेदभाव नहीं करता.