ATN:मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अब बागी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और 22 पूर्व विधायकों को नाकों चने चबावाने की तैयारी कर रहे हैं। कमलनाथ को भरोसा है कि सिंधिया और भाजपा दोनों को मुंह की खानी पड़ेगी।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक नेताओं का भी यही कहना है। क्षेत्र के कद्दावर नेता गोविंद सिंह को भी लग रहा है कि उप चुनाव में भाजपा और सिंधिया दोनों को पता चल जाएगा।
ज्योतिरादित्य को अपने विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक वोट दिलवाने वाले केपी सिंह भी कहते हैं, जरा उप चुनाव की तारीख तो नजदीक आने दीजिए। केपी सिंह अमर उजाला से विशेष बातचीत में कहते हैं कि इसका अंदाजा ज्योतिरादित्य को भी है।
वह जानते हैं कि उपचुनाव आसान नहीं होगा। इसलिए वह शिवराज मंत्रिमंडल से लेकर केंद्र सरकार में अधिक से अधिक सत्ता पा लेना चाहते हैं। अभी जितना चाहें दबाव बनाकर भाजपा को पिघला लें, लेकिन बाद में मुश्किल होगी।
ग्वालियर में लाखन सिंह, मुरैना में कांग्रेस जिलाध्यक्ष और रवीन्द्र सिंह तोमर जैसे कई नेताओं के बूते कांग्रेस बड़ी चुनौती देगी।
‘कांग्रेस में शान थी, अब सिंधिया नरेंद्र तोमर के लॉन में बैठकर समोसे खा रहे हैं’
इस समय कमलनाथ और दिविजय सिंह के लिए न केवल भरोसेमंद हैं, बल्कि सिंधिया के खिलाफ मजबूत हथियार हैं। गोविंद सिंह का कहना है कि कांग्रेस में वे ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। हाई कमान तक पहुंच थी और दबाव बनाकर 40-50 नेताओं को टिकट दिलवाते थे। इनमें से अधिकांश हार जाते थे।
जिन्हें सिंधिया को नजरअंदाज करके टिकट मिलता था, खुल्लम खुल्ला उन्हें हरवाने में लग जाते थे। कोई कुछ बोल नहीं पाता था। यहां जनता तो जनता, नेता से भी हाथ नहीं मिलाते थे।
समय नहीं रहता था। वहां (भाजपा) नेताओं के चक्कर काट रहे हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के यहां जमीन पर बैठकर समोसे खा रहे हैं।
केवल सिंधिया के कारण नहीं जीते थे
इतने बड़े नेता होते तो अपना लोकसभा चुनाव जीत जाते। हार गए और हार भी नहीं पची, लेकिन अब जनता को सरकार गिराना अखर गया है। गोविंद सिंह और केपी सिंह दोनों का कहना है कि क्षेत्र में बस दो खबर है।
पहली तो यह कि सिंधिया ने सत्ता के लिए सरकार गिराई, सौदेबाजी की। दूसरा, जनता ने भी मान लिया कि चुने गए विधायकों ने बड़ी सौदेबाजी करके पाला बदल लिया। गोविंद और केपी कहते हैं कि यह जनता बर्दाश्त नहीं करेगी।
उप चुनाव में दो बड़े मुद्दे होंगे
इन 22 विधायकों को भाजपा के उन विधायकों का भी अंदरुनी तौर पर सामना करना पड़ेगा, जो अभी तक विधायक रहे हैं। उनका राजनीतिक कैरियर भी दांव पर है।
कुर्सी से उठाकर पटक दीजिए और टीस न हो...?
दरअसल कांग्रेस से बगावत करके इस्तीफा देने वाले 22 में से 15 विधायकों का क्षेत्र ग्वालियर चंबल संभाग है। जौरा और अगर मालवा की जो दो सीटें कांग्रेस और भाजपा के एक-एक विधायक की मृत्यु से खाली हुई हैं, उनमें से एक इसी संभाग में आती है।
इस तरह से इस संभाग में 16 सीटों पर चुनाव होना है। 8 सीटें राज्य के अन्य हिस्सों से जुड़ी हैं। इस तरह से सितंबर-2020 तक 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने की संभावना है।