मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड- अर्थव्यवस्था में सी ग्रेड, शासन में डी ग्रेड लेकिन राजनीति में ए ग्रेड

ATN:करीब एक साल पहले ही नरेंद्र मोदी पूरे जनादेश के साथ दूसरी बार प्रधानमंत्री के लिए चुने गए थे. उनके दूसरे कार्यकाल का पहला साल अर्थव्यवस्था की बुरी स्थिति से गुजर रहा है जिसे संभालने के लिए उनकी सरकार संघर्ष कर रही है. पहले कार्यकाल की तुलना में इस बीच न कोई बड़ी जनकल्याणकारी योजना दिखी और न ही इस दौरान किसी जनसमुदाय की आकांक्षा के लिए कोई नीति ही दिखी.



लेकिन फिर भी ये साल पूरी तरह नरेंद्र मोदी के ही नाम रहा जिसने उन्हें राजनीतिक तौर पर और मजबूत किया है.


30 मई 2019 को अपना कार्यकाल शुरू करते ही नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख वादों को पूरा करने में लगे रहे जिनमें- जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म कर विशेष दर्जा वापस लेना हो या ध्रुवीकरण करने वाले नागरिकता संशोधन कानून को लाना हो, तीन तलाक कानून पारित कराना हो या अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट की स्थापना करने के लिए उनकी सरकार द्वारा प्रयास करना हो.


जबकि ये पूरा साल आर्थिक पहलू पर काफी खराब रहा है जिसने मोदी और उनके कैबिनेट के शासन की खोखली क्षमता और अर्थव्यवस्था पर कमजोर पकड़ को उजागर किया है. लेकिन इस बीच राजनीति केंद्र में बनी रही.


और अब अभूतपूर्व कोविड-19 संकट के बीच मोदी को खुद को तारणधार नेता के तौर पर उभरने का मौका मिल गया है.


इसका ये भी मतलब है कि विपक्ष के लिए कुछ भी आसान नहीं होगा और ‘मोदी ब्रांड’ को कमजोर करने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी होगी.


मोदी सरकार के इस साल में अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति ही मुख्य खबर बनी रही. 1 जनवरी 2020 को सांख्यिकी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले एनएसओ ने अनुमान लगाया कि 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी जो पिछले 11 साल में सबसे निम्नतम स्तर होगा.


मोदी और उनकी टीम स्पष्ट रूप से मंदी की स्थिति में अपनी गहराई से बाहर लग रही थी. उनके पिछले फैसलों, जैसे 2016 के विमुद्रीकरण ने, लोगों की नौकरियां ली जिसके काफी बुरे प्रभाव भी देखने को मिले.


यह साल पूरी तरह से इस बात से रहित था कि मोदी के पहले कार्यकाल को पीएम के रूप में किस रूप में परिभाषित किया गया था, और उनकी वापसी में किसने अहम योगदान दिया. लेकिन इस साल कल्याणकारी और गरीब-विरोधी योजनाओं पर कोई ज़ोर नहीं दिया गया. इस प्रकार, जबकि 2014-2019 में उज्जवला, ग्रामीण आवास, जनधन, आयुष्मान भारत, सौभाग्‍य, स्‍वच्‍छ भारत, ‘मॉडल विलेज’ के निर्माण पर काफी जोर था- जिनमें से कई को उनके कार्यकाल के आरंभ में शुरू किया गया था, पिछले वर्षों में ऐसी कोई कल्पना कल्याणकारी मोर्चे पर नहीं दिखी. इसके अलावा, यहां तक ​​कि ग्रामीण आउटरीच और मौजूदा गरीब समर्थक पहल पर भी ध्यान कम ही दिया गया है.



लेकिन फिर भी राजनीतिक तौर पर मोदी के लिए पूरा साल सफल रहा. सफलता इसलिए क्योंकि उन्होंने उन वादों को पूरा किया जिन्हें बहुसंख्यक हिंदुत्ववादी और अति-राष्ट्रवादी मतदाता पसंद करती थी.


अनुच्छेद-370 को खत्म कर मोदी ने मतदाताओं के बीच कहा कि उन्होंने कश्मीर को भारत में मिला दिया है. सीएए के जरिए उन्होंने अखंड भारत और पड़ोसी मुल्कों में रह रहे हिंदुओं को लामबंद कर दिया. तीन तलाक बिल के जरिए मोदी हिंदुओं को कह सकते हैं कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को उनके धर्म के कारण हो रहे अन्याय से बचा लिया. और अयोध्या पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उन्हें मजबूती देने वाला रहा. खासकर सरकार पर ट्रस्ट बनाने का दायित्व लेकर आया जो मंदिर के निर्माण की देखरेख करेगी.


एक मायने में, मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में बहुत कम काम किया है लेकिन फिर भी, मोदी को इस बीच अपनी राजनीतिक छवि को बढ़ाने का मौका मिला जिसकी उन्हें चाह थी.


जैसा कि एक मुहावरा है- हर संकट एक अवसर लेकर आता है. वैसे ही नरेंद्र मोदी के लिए कोरोनावायरस भी ऐसा ही एक मौका है जब वो खुद की छवि को अपने अनुसार बदल सकते हैं- एक ऐसे राजनेता के तौर पर जो सभी को साथ लेकर चल सकता है और देश को मुश्किल समय से बाहर निकाल सकता है.


यह महामारी दोधारी तलवार साबित हो सकती है- राजनेताओं के लिए काफी बुरी साबित हो सकती है जो ठीक तरह से इससे निपट नहीं पा रहे हैं जैसे कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान.


लेकिन मोदी के लिए महामारी को संभालने का अबतक का अनुभव उनके पक्ष में ही रहा है और इसने खस्ताहाल आर्थिक स्थिति से भी ध्यान हटाने में मदद की है.


राजनीतिक दृष्टि से देखें तो अब कोरोनावायरस को किसी भी आर्थिक मंदी का दोषी ठहराया जा सकता है.


कोविड-19 संकट ने उन्हें एक बार फिर से शोमैन बनने और भारतीय राजनीतिक स्पेस पर प्रभुत्व जमाने का मौका दिया है.


पहले साल के रिपोर्ट कार्ड को देखें तो शासन, नीति बनाने और आर्थिक स्तर पर मोदी कुछ पीछे ही रहे हैं लेकिन राजनीतिक तौर पर जो उनके लिए काफी मायने रखता है वहां वो स्पष्ट हैं.


(व्यक्त विचार निजी हैं)


 


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