प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती बनने का सपना तो नहीं देख रहे हैं राहुल गांधी?

ATN:कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों फिर काफी सक्रिय हैं। लॉकडाउन के दौरान राहुल गांधी हर रोज देशभर के पार्टी के तमाम नेताओं, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, विशेषज्ञों से चर्चा कर रहे हैं।


हर रोज एक या दो ट्वीट कर रहे हैं और इसके जरिए लगातार सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। उन्होंने सहयोगात्मक रुख तो अपनाया है पर साथ ही कमियों की ओर ध्यान दिलाने की नीति पर चल रहे हैं।



पार्टी के अंदरखाने यह चर्चा तेज हैं कि राहुल गांधी कोविड-19 का संक्रमण काल खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को बड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। इसी को ध्यान में रखकर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी कदम बढ़ाती नजर आ रही है।
 
राहुल गांधी लगातार यह बता रहे हैं कि कैसे कांग्रेस शासित राज्यों में वह कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए सुझाव देने, रिपोर्ट लेने में सक्रिय हैं। कांग्रेस शासित राज्यों या कांग्रेस की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री अथवा कमलनाथ जैसे पूर्व मुख्यमंत्री भी राहुल गांधी के प्रयासों और सुझाव की तारीफ कर रहे हैं।



समिति के क्या हैं मायने?


गुरुवार 23 अप्रैल को कांग्रेस कार्यसमिति की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बैठक होनी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इसी में आगे की रणनीति भी तय की जाएगी। इसमें राहुल गांधी की सक्रियता पर चर्चा की बात सूत्रों से पता चली है। 



इसके साथ सभी का ध्यान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की 11 सदस्यीय टीम पर जा रहा है। इस सलाहकार टीम के अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। संयोजक रणदीप सुरजेवाला हैं। मनमोहन सिंह के बाद दूसरा नाम राहुल गांधी का है।



संगठन महासचिव, केसी वेणुगोपाल, पी चिदंबरम, मनीष तिवारी, जयराम रमेश, प्रवीन चक्रवर्ती, गौरव वल्लभ, सुप्रिया श्रीनेत और रोहन गुप्ता इस टीम में शामिल हैं। टीम में न तो आनंद शर्मा हैं और न ही तमाम अन्य नेताओं को स्थान मिला है।



कारण साफ है। कांग्रेस कहीं न कहीं महसूस कर रही है कि कोविड-19 का संक्रमण काल खत्म होने के बाद केंद्र सरकार और भाजपा के साथ उसी की भाषा में राजनीतिक लड़ाई तेज करनी पड़ेगी। अभी के माहौल में कांग्रेस के पास इसके लिए राहुल गांधी से उपयुक्त कोई चेहरा नहीं है।
आखिर कौन करेगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला


पार्टी के तमाम नेताओं की तरह महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुष्मिता देव का भी मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर सवाल उठाने के लिए राहुल ही सबसे मजबूत चेहरा हैं।



चर्चा के दौरान सुष्मिता कहती हैं कि आप राहुल गांधी के सवाल उठाने पर भले सवाल उठा दें, लेकिन कोई हमें बताए कि राहुल गांधी ने कौन सा गलत मुद्दा उठाया? क्या यह सच नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में नोटबंदी और जीएसटी के खिलाफ उन्होंने मजबूती से आवाज उठाई थी?  



सुष्मिता सवाल पूछती हैं कि आखिर आप हमें बताइए, अभी विपक्ष का कौन सा नेता सरकार को आइना दिखाने के लिए बोल रहा है? सुष्मिता देव की तरह कांग्रेस में कई लोगों का मानना है कि पार्टी को अच्छा भविष्य राहुल गांधी ही दे सकते हैं।



इन घटनाक्रमों पर नजर डालिए


कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ने कोविड-19 को लेकर काफी पहले सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। वह 12 फरवरी से ही इस मुद्दे को उठा रहे हैं। राहुल खुद कहते हैं कि जब उन्होंने यह मुद्दा उठाया तो सत्ता पक्ष के लोगों ने उनका उपहास तक करने की कोशिश की।



मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिरने और देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद राहुल गांधी ने कोविड-19 के खतरे और स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार के प्रति सहयोगात्मक रुख अपनाया पर साथ ही वह केंद्र सरकार को चेताते भी रहे।
मनरेगा के मजदूरों, लघु, सूक्ष्म, मध्यम उद्योगों को राहत देने, गरीबों को अनाज, सब्सिडी का सीधे खाते में पैसा, किसानों को राहत देने के लिए उनकी मांग उठाते रहे। कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने विस्तृत प्रेस वार्ता भी की थी।



तब भी उन्होंने केंद्र सरकार के साथ राजनीति न करने, पार्टी से ऊपर उठकर सोचने, सरकार को सहयोग देने की ही बात कही। उन्होंने केंद्र सरकार से कोविड-19 से लड़ने के लिए ठोस दूरगामी रणनीति बनाकर आगे बढ़ने, देश के गांवों, अर्थव्यवस्था में पैसा डालने का अनुरोध किया।
ज्योतिरादित्य का झटका पीछे छूट गया


राहुल गांधी की टीम में शामिल एक युवा नेता का कहना है कि ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ देने की राहुल को उम्मीद नहीं थी। इसलिए ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद वह कुछ दिन तक परेशान भी दिखे।



बताते हैं राहुल गांधी को उम्मीद थी कि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन अब उनका आत्मविश्वास लौट आया है। उनको भी लग रहा है कि मध्य प्रदेश का 24 सीटों पर होने वाला विधानसभा का उपचुनाव काफी रोचक होगा।